ट्रांसफर-पोस्टिंग से पहले बिहार के सरकारी स्कूलों के शिक्षकों की प्रतिनियुक्ति रद्द कर दी गई है। शिक्षकों को अपने मूल स्कूल में जाने का निर्देश दिया गया है। 7 हजार से अधिक शिक्षकों की उनके मूल स्कूल में वापसी हो रही है। इसकी वजह है नई ट्रांसफर नीति में शिक्षकों की प्रतिनियुक्ति पर रोक है। ऐसे में ट्रांसफर-पोस्टिंग प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही शिक्षकों को अपने मूल स्कूलों में वापस किया जा रहा है। ये वे शिक्षक हैं, जो लगभग 2 वर्ष तक प्रतिनियुक्ति पर थे।
3.85 लाख शिक्षकों के ट्रांसफर पोस्टिंग को देखते हुए अधिकारियों के भी प्रतिनियुक्ति को भी खत्म किया जा रहा है। 2 महीने से दौरान 300 से अधिक अधिकारियों के प्रतिनियुक्ति रद्द हुई है। इनमें वे अधिकारी भी शामिल हैं, जो अपने गृह जिला के समीप लगभग 2 वर्ष से काम कर रहे थे।
ट्रांसफर के लिए आवेदन देते समय शिक्षकों को प्रतिनियुक्ति की जानकारी नहीं देनी है। शिक्षकों को अपने मूल
स्कूल, पंचायत के साथ ही पोस्टिंग चाहने वाली पंचायत, अनुमंडल की जानकारी देनी है। कार्य अनुभव में प्रतिनियुक्ति का विवरण होगा।
जानिए ऐसा क्यों...
स्कूलों में शिक्षकों की हो गई थी कमी, इसलिए रद्द की जा रही प्रतिनियुक्ति
प्रतिनियुक्ति की वजह से मूल स्थान में शिक्षकों की कमी हो गई है। शिक्षक और अधिकारी घर के नजदीक वर्षों से प्रतिनियुक्ति पर काम कर रहे थे। इससे स्कूलों में पढ़ाई बाधित हो रही थी। बाल्किमीनगर, मधुबनी, रक्सौल सहित नेपाल से सटे क्षेत्रों में छात्रों के अनुपात में शिक्षकों की संख्या आधी से भी कम है। यूपी के रहने वाले शिक्षक प्रतिनियुक्ति के आधार पर गोपालगंज, बक्सर, सीवान, बगहा, आरा में काम कर रहे थे। जबकि झारखंड के निवासी शिक्षकों जमुई, नवादा में प्रतिनियुक्ति के आधार पर काम कर रहे थे। ऐसे में मूल स्कूलों में शिक्षकों की कमी होने से पढ़ाई बाधिक हो रही थी।
अब सिर्फ तीन महीने की प्रतिनियुक्ति का प्रावधान
ट्रांसफर नीति के तहत शिक्षकों के प्रतिनियुक्ति पर पूरी तरह से रोक है। जिले में स्थित डीएम की अध्यक्षता वाली कमेटी की अनुशंसा पर केवल 3 महीने की प्रतिनियुक्ति देने का प्रावधान बनाया गया है। ऐसे में ट्रांसफर- पोस्टिंग के बाद 5 वर्षों तक शिक्षक निर्धारित स्कूलों में कार्य करेंगे। जबकि अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति भी निर्धारित समय के अनुसार होगी।
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